उधार का इतवार
उधार का इतवार
इतवार उधार का लगता है आजकल
पूछूँ मिले तो कहा है मेरे वो अपने पल
अजनबी रास्तो और गलियों में अपना कोई मिलता नहीं
क्या करें अपनोकी गलीसे आजकल मैं भी तो गुजरता नहीं
दरवाजे पर दस्तक मेरे नाम की तो होती है
पर खोलने के बाद मुलाकात काम से ही होती है
बचपन का इतवार लाता था मस्ती के साथ सुकूनभरे पल
आज का इतवार स्क्रीन के साथ ही होता है आंखोंसे ओझल
किसी को मिले अगर सुकूनभरा वो इतवार
मिलवाना जरूर, मुझे भी है उसका इंतजार
#गौरीहर्षल
६.१.२०२०
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