ख्वाहिशे
कभी दबे पाँव जो मिलने आती है ,
कोई देख न ले जाते हुए इसलिए
चुपकेसे चली जाती है ख्वाहिशें।
समझदारी ने कंधोपे जो बोझ रख दिया है
वो देखके जाते जाते
हल्केसे मुस्कुराती है ख्वाहिशें।
हमारी मुलाकात में
मुझे मिल जाता है सुकून
न जाने कैसा,
हलका हलका लगने लगता है
उतरा हो कोई कर्ज जैसा।
५.३.२०२०
#गौरीहर्षल
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